December 23, 2024
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कर लो दुनिया मुठ्ठी में, सोच का इलाज सिख संस्कृति में

यह कोई कहावत नहीं है यह आज देश और दुनिया कड़वी सच्चाई है | देश और दुनिया में कर लो दुनिया मुठ्ठी में की सोच हावी है | टीवी पर यह एडवर्टाइजमेंट देखकर हमने भी कभी तालियां पीटी होगी, लेकिन आज यह सच किसी राक्षस की तरह मुंह खोलकर खड़ा है | आज देश और दुनिया में यह सोच हावी है की कुछ मुट्ठी भर लोग देश के सारे संसाधनों पर कब्जा करना चाहते हैं | दूसरी और पूरी दुनिया की जरूरत बन चुकी सिखों की संस्कृति, जिसने न केवल देश बल्कि पूरी दुनिया को अपनी चेतना से प्रभावित किया है, एक बार पहाड़ या किसी चट्टान से टकराकर तो जीता जा सकता है लेकिन इस चेतना से टकराकर नहीं जीता जा सकता क्योंकि यह चेतना उनकी अपनी नहीं है यह उनके गुरु के धरोहर है | अमृतसर में स्थित श्री हरमंदिर साहिब जहां लाखों लोग रोज भोजन करते हैं के लिए मांग उठी थी की वहां उपयोग करने वाले राशन पर जीएसटी कर ना लगाया जाए क्या हुआ उस मांग का कुछ नहीं इससे पता चलता है की सरकारों के हाथ कितने तंग रहे हैं, जबकि गुरु के हाथ कितने खुले | संसाधनों पर कब्जा करके बैठ जाना और दोनों हाथों से लंगर प्रसाद बांटना यह दोनों लाइन किसके लिए हैं यह पूरी दुनिया जानती है | जहां बहुत से देश के सैनिक भी जाने से घबराते हैं वहां भी यह लोग इंसानियत बांटने पहुंच जाते हैं कौन है यह लोग ? कहां से आती है इनके पास इतनी शक्ति ?

 

इसी शक्ति से डर के कारण चंद मुट्ठी भर बिजनेसमैन अपनी उंगलियों के इशारे पर नाचने वाली मीडिया को सुपारी देती है उनकी छवि खराब करने की |

 

देश में तीन काले कानून आते हैं जो कृषि से संबंधित थे, किसान देशभर में इसके खिलाफ आंदोलन करते हैं लेकिन प्रमुखता यूपी हरियाणा और पंजाब रहा, और भी कई राज्यों ने इसमें सक्रिय भूमिका निभाई लेकिन इसमें पंजाब अग्रणी रहा यदि यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा | पंजाब राज्य जो की सिख बहुल है, उसने न केवल बहादुरी से बल्कि बहुत ही संयम से काम लिया | देशभर में आंदोलन चल रहे थे लेकिन पंजाब के किसानों को मुख्य रूप से गोदी मीडिया द्वारा टारगेट किया गया, उनको खालिस्तानी, बीजेपी के कुछ नेताओं द्वारा मावाली तक कहा गया | कौन है यह लोग जिन्होंने सिख किसानों की छवि को खराब करने की कोशिश की, और क्यों ? गौरतलब है कि देश ने पहली बार केंद्र की सरकार की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा देखी |

1 साल से ज्यादा तक समय किसान गर्मी सर्दी और बरसात की मार झेलते बैरियर्स पर बैठे रहे | और फिर एक दिन प्रधानमंत्री टीवी पर आए और कहा कि वह किसानों को समझा नहीं पाए और वह है कानून वापस लेते हैं तब तक लगभग 750 सौ से ज्यादा किसानों की शहादत हो चुकी थी | ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि किसान आंदोलन की वापसी के पीछे पंजाब के किसानों का भारी दबाव रहा |

 

इन्हीं किसानों का उगाया हुआ अनाज आज केंद्र सरकार 5 – 5 किलो दान बांट कर खुद को दानवीर कहलवाना चाहती है, जबकि यह अनाज बांटना केवल कुछ उद्योगपतियों की ढाल से ज्यादा कुछ भी नहीं | एक तरफ देश की 80 से 90% आबादी इनमें से यदि 40% की चेतना भी जाग गई कि उनका हक मार कर कुछ उद्योगपतियों को दिया जा रहा है तो बिजनेस करना तो दूर की बात भागने के लिए पूरी दुनिया की जमीन भी छोटी पड़ जाएगी | इसलिए सरकार की यह जिम्मेवारी होती है कि संसाधनों का बंटवारा सही ढंग से हो | यह नहीं कि आप केवल एक या दो बिजनेसमैनों को जल, जमीन जंगल,कोयला , समुद्री पोर्ट एयरपोर्ट आदि दे दे यह किस धर्म या संस्कृति का हिस्सा है यह कैसा इंसाफ | आज अमेरिका से लेकर यूरोप तक सरकारे क्यों वह अपने नागरिकों को जीवन जीने के लिए सभी महत्वपूर्ण सुविधा प्रदान कर रहे हैं , कि यदि वह ऐसा नहीं करेंगे तो विद्रोह होने का खतरा हो जाएगा | इसलिए इसे मनोवैज्ञानिक ढंग से देखा और सोचा जाना चाहिए क्यों कुछ उद्योगपतियों को उनकी छवि खराब करने की इतनी जल्दी है एक तो उनकी शक्ति और दूसरी और वह चेतना जो भूखे को खाना खिलाकर और जरूरतमंद के दर्द को अपना समझ कर मिटाने की हर संभव कोशिश करती है | एक तरफ उनके अनाज से भरे हुए गोदाम है जिनके तालो पर उनके मालिक की मोहर लगी है तो दूसरी ओर गुरु का दरबार जो चारों तरफ से हर किसी के लिए खुला हुआ चाहे वह कोई युद्ध हो किसान आंदोलन हो या शाहीन बाग का आंदोलन | लेकिन आज सरकार की संवेदनहीनता के कारण लंबे चल रहे धरने से उठाना पड़ा, क्योंकि कभी किसी सरकार में इतने लंबे आंदोलन नहीं चले और ना ही बाकी लोगों को तकलीफों का सामना करना पड़ा फिर भी सभी की सहमति से उन्होंने यह कदम उठाया | इस संस्कृति के बिना दुनिया में कहीं भी जीना संभव नहीं है | आज पूरी दुनिया को जरूरत है इस संस्कृति की और संस्कारों को अपनाने की | इनके ऊपर कटाक्ष करना , चुटकुले बनाना तो आसान हो सकता है लेकिन उनके जैसा बनना जरा सोच कर देखने की बात है |

इसलिए कर लो दुनिया मुठ्ठी वाले कुछ मुट्ठी भर उद्योगपति यह ध्यान रखें कि कहीं ऐसा ना हो की जनता अपनी मुट्ठी खोल दे और ना आपकी मुट्ठी रहे और ना ही आपके लूटतंत्र का बिजनेस | जय जवान जय किसान जय हिंद |

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